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'जरूरतमंद बच्ची को इस योजना का लाभ मिलें !' हर साल आज के दिन  24 जनवरी के'(कन्याश्री योजना ) दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस योजना के तहत हर साल 750 रुपया अनुदान दिया जाता है ताकि 18 साल से अधिक उम्र में शादी हो और लड़की के 18 साल होने पर एक बार 25 ,000 रूपये की राशि प्रदान की जाती है। यह हमारी माननीया मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जी का  बहुत ही अच्छा प्रयास है, पर डर लगता है कि इस  योजना का सही लोगों तक लाभ  पहुंच पाएंगा या असामाजिक तत्व ही इसका बेजा फायदा  उठा लेंगे ? क्योंकि कई लोग गलत और गैरकानूनी ढंग से सुविधाओं का दुरूपयोग करते हैं  इसलिए बहुत -सोच-समझ और देखभाल ,सही मायने में मायने में  जरूरतमंद बच्ची को उसका हक अर्थात इस योजना का लाभ मिले।

'क्या यें मानसिक अपराधी भी गुड़ टच और बेड टच के मायने समझते हैं ?..'

सरकार ने बच्चो की सुरक्षा  लिए यह नियम लागू किया है कि अब से कॉन्डम के विज्ञापन रात को 10 बजे के बाद दिखाए जायेंगे तथा स्कूलों के पाठ्य क्रम में गुड टच और बेड टच का एक सबक भी पढ़ाया जायेगा। तो ये बात उन मानसिक रूप से बीमार तथाकथित  पढ़े -लिखे टीचरों के कैसे बताई जायेगीं ?..  ?  आखिर उन्हें भी तो कोई ऐसा सबक या नियम सिखाया या पढ़ाया जाये कि भई अबोध और  नन्ही -मासूम बच्चियों को तो बक्श दें !ऐसे मानसिक विकृतियों वाले पिशाचों से हम कैसे इन्हे बचाएंगे ?ये दरिंदे तो इंसानी खाल में हर जगह मौजूद रहेंगे।  इनके डर से हम अपने बच्चियों की  कहां- कहां तक कैसे और कब तक रखवाली कर सकेंगे ?-.. स्कूल बस या ,वैन, स्कूल ,पार्क और यत्र-तत्र सर्वत्र कही भी तो सुरक्षित नहीं हैं। आये दिन स्कूलों में इसके ऐसी घटनाओ के अलावा बुलिंग और हत्याएं जैसी अप्रत्याशित  वारदातें भी  होती रहती हैं जिससे अभिभावक और छात्र बहुत डरे  हुए रहते हैं। कितने बच्चे तो डरके मारे स्कूल ही नहीं जाना चाहते हैं तथा अभिभावक भी उनकी सुरक्षा के लिए चिंत...

पाठकों की कलम से -----ऐसे -मानसिक विकृति के लोगों की समाज में जगह नहीं हैं !

आदरणीय सम्पादक महोदय ,                                                 एक हाईप्रोफाइल स्कूल में एक 4 साल की मासूम  बच्ची से उसी स्कूल के  सो कॉल पढ़े-लिखे 2 टीचरों ने रेप किया !  यह समाचार पढ़ते हीमैं  सन्न रह गयी। यह कैसे जानवर हैं ? जो ऐसी मनोविकृत सोच रखते हैं ?..  जिस देश में छोटी-छोटी बच्चियों को  माँ दुर्गा का विभिन्न रूप मानकर नवरात्रों में आदर-सत्कार से  पूजा जाता हैं वही ऐसी विकृत -बीमार सोच वाले जानवरों को खुला छोड रखा  है, कैसे वे मासूम बच्चियों के प्रति ऐसी कुत्सित सोच रख सकते  हैं ?  ऐसे  घृणात्मक कृत्य को अंजाम देने का शर्मनाक कांड भी कर गुजरते है?..  इनके तो अंग-प्रत्यंग छिन्न -भिन्न करके नपुंसक बना देना चाहिए  ताकि   ये जीवन भर  पुरुषत्व से वंचित हो जाए और जीवित रहकर इस संत्रास को झेलें। मेरी समझ में ऐसे पशुवत कार्य के लिए और कोई सजा समझ में नहीं आती। वैसेत...

महात्मा बुद्ध एक क्रान्तिकारी और सुधारवादी आंदोलन के एक शांतिदूत थे

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई .पूर्व वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।  आज विश्व के कोने-कोने में वैशाख पूर्णिमा के शुभ अवसर को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता हैं और  जिस पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें कठिन तपस्या कर बोधिसत्व प्राप्त हुआ था उसका रोपण भी वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।  सिद्धार्थ के रूप में भगवान गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी नामक स्थान पर राजा शुद्धोधन के यहां हुआ। पिता शाक्य वंश के क्षत्रिय राजा शुद्धोधन और माता कौशल वंश की राजकुमारी महामाया थी। बचपन में माता की मृत्यु होने पर उनका लालन -पालन विमाता गौतमी ने किया। ज्योतिषियों के अनुसार -'-बालक सिद्धार्थ यदि चक्रवती सम्राट नहीं बन पाया तो सन्यासी हो जाएगा। 'राजा शुद्धोधन ने भोग-विलास के वातावरण में रखते हुए मात्र 18 वर्ष की किशोरावस्था में अत्यंत रूपसी राजकन्या यशोधरा से उनका विवाह कर दिया। एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल अर्थात बंधन रखा गया। पर विधि का विधान जीवन को मोहमाया मानते हुए 21 वर्ष की युवावस्था में ज्ञान की खोज में आधी रात को पत्नी-बच्चे को सोता हुआ छोड़कर महल से निकल...

समय का पालन

राधामोहन सुप्रसिद्ध पंडित थे। उस दिन शाम को समस्तपुर के जमींदार की अध्यक्षता में उनका सम्मान संपन्न होनेवाला था। उनका इरादा था कि उस अवसर पर एक संदेशात्मक कविता सुनाऊं। वे इसी विषय को लेकर तीव्र रूप से सोचने लगे। सूर्योदय -अस्तमन ,दिन-रात ,पूर्णिमा ,अमावास ,ग्रीष्म ,पावस सबके सब निश्चित समय पर आये हैं। प्रकृति का हर अणु समय का पालन करता हैं।  मनुष्य को अन्य जंतुओं से अलग करता हैं ,अनुशासन।  अनुशासन का प्रथम व अंतिम चरण हे ,समय का पालन। प्रगति चाहनेवाले हर व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है समय का पालन। यह उसकी सांस के बराबर है  .उन्होंने सोचा कि यह सन्देश आज के वातावरण के अनुकूल रहेगा ,क्योंकि मंत्री ,नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी अपनी-अपनी ड्यूटी पर विलम्ब से पहुंचते हैं और समय का मूल्य नहीं समझते। इसलिए इस अर्थ की कविता रचने के लिए वे दीर्घ सोच में पड़ गये।  उस दिन दोपहर को उन्होंने जमींदार के यहां स्वादिष्ट भोजन किया ,जिसकी वजह से उन्हें थोड़ी देर से निकलना पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद घोड़ागाड़ी की गति बढ़ गयी। वे उस वेग को देखकर जरा घबड़ा गये और उन्होंने गाड़ीवाले से ...

माओवादियों द्धारा 26 जवान शहीद और माओवादियों की गोलियों से छलनी नवविवाहिता की खुशियां।

हिंसा का मार्ग अपनाकर कभी भी समाज में  परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। अगर नक्सलियों को समाज में परिवर्तन लाना हैं तो उन्हें मुखयधारा से आना होगा क्योंकि खून-खरबों से कभी भी वे समाज में बदलाव नहीं ला सकते ये बातें केंद्र में समाजिक न्याय व् सशक्तिकरण मंत्री व् रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्धारा केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों पर हमले की घटना की निंदाकी।  सचमुच नक्सल मुद्दा काफी गंभीर हे जल्द ही उसका कोई हल निकलना चाहिए। उनकी मांग सही हो सकती हैं पर उनका तरीका गलत है। .बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने छत्तीतगढ़ के सुकुमा में हुए नक्सली हमले में  25 जवानों की शहादत पर मंगवार 14 /4 /17 को गहरा शोक व्यक्त किया।वही राजद अध्यक्ष  लालूप्रसाद यादव  ने भी  नक्सली  हमले की कड़ी निंदा की और केंद्र सरकार से कठोर कार्रवाई करने की मांग की।  मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा --' --जवानों की शहादत को देश हमेशा याद रखेगा। उन्होंने वीर सपूतों के परिजनों को दुःख की इस घड़ी में   धै...

रेगिस्तान में जहाज

जापान के एक द्धीप में मासाओ नाम का एक सीधा-सादा  युवक रहता था। उस गांव के लोग मछली पकड़ने का काम करते थे।  मासाओ भी  मछली पकड़ने वाले एक जहाज में खाना बनाने की नौकरी करता था। उस जहाज का कप्तान बहुत दयालु था उसने ही उसे नौकरी पर रखा था। वह  बहुत खुश था। और मन लगाकर खाना बनाने लगा। लेकिन चलते हुए जहाज में खाना पकाना बहुत ही मुश्किल था। कभी तेज हवा चलती ,कभी तूफान आ जाता तो कभी लहरें उठने लगती ,तब जहाज भयंकर तरीके से हिलने-डोलने लगता और खाने का सारा समान भी छितर जाता था। उसकी ड्यूटी सुबह से लग जाती थी। सुबह का नाश्ता बनाना फिर सबको जा-जाकर खिलाना। जूंठे बर्तनों को धोना ,रसोई की सफाई करके दोपहर का खाना पकाना और खिलाना। रात को भी खाना बनाकर ,सबको खिलाकर ,सब काम खत्म करके खुद खाता और जो कुछ भी खाना बचता था वह एक डलिया में डालकर जहाज के डेक पर चढ़कर समुद्र में डाल देता और बहुत मधुर स्वर में गीत गाते हुए मछलियों को पुकारा करता था। और यह आश्चर्य की बात थी कई रंग-बिरंगी मछलियां मासाओ का कर्णप्रिय गीत सुनकर जहाज के पास आ जाती थीं और उसका डाला हुआ भोजन पलभर में ही चट कर जाती ...