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Showing posts from 2015

जाकी रही भावना जैसी !

एक बार देवर्षि  नारद मुनि वीणा बजाते और 'नारायण-नारायण 'का उच्चारण करते हुए द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण के पास गये। भगवान के चरणों की वंदना कर आसन ग्रहण किया। भगवान बोलें-'कहिये देवर्षि !आपका कैसे आना हुआ ?' नारद ने कहा -'प्रभो !आप तो सर्वव्यापी है। कण-कण में आप व्याप्त है। ,पर मेरे मन में एक शंका है कृपा करके उसका समाधान करें। आपको दुर्योधन से अधिक युधिष्ठिर क्यों प्रिय है ?ऐसा क्या है उसमें ?' यह सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोलें--'देवर्षि ! सबकी अलग-अलग सोच है ,स्वभाव के अनुसार अलग-अलग भावना है। एक ही विषय पर हम अपने सोचने के ढंग से अपंने अनुकूल बना सकते है और प्रतिकूल भी। अच्छा हो ,यदि आपको अपने प्रश्न का उत्तर दुर्योधन और युधिष्ठिर से ही मिले। मै उन्हें बुलवाता हूँ। ' श्री कृष्ण ने दोनों को बुलवाया। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा -'कही से एक ऐसा आदमी ढूंढ़कर लाओ जो तुम्हारी दृष्टि में सबसे बुरा हो ?'    'जो आज्ञा 'कहकर युधिष्ठिर भगवान को प्रणाम करके चले गये।  दुर्योधन के आने पर कृष्ण बोलें --''गांधारी नंदन ! तुम  कोई ...

मनोरंजन--कर्मो का फल भोगना पड़ता है !

ब्रह्मदत्त काशी राज्य पर शासन करते थे। उन दिनों बोधिसत्व ने एक वानर के रूप में जन्म लिया। उसका नाम नन्दीष था। उसका एक छोटा भाई भी था। वे दोनों हिमालय में 80 हजार वानरों के नेता थे। नन्दीष की अंधी माँ की देखभाल की जिम्मेदारी उसी पर थी। वह और उसका छोटा भाई प्रतिदिन फलों के बागों से मीठे और रसीले फल तोड़कर लाते और उन्हें दल के सेवकों के हाथों अपनी माँ के पास भेजा करते थे।  एक दिन नन्दीष अपनी माँ को देखने आ पहुँचा। माँ को देखकर वह अचरज में पड़ गया और  पूछा,-'माँ ,तुम कितनी कमजोर हो गई हो ?हम रोज तुम्हारे पास अच्छे-अच्छे फल भेजते है ,क्या तुम उन्हें नहीं खाती ?तुम्हारी सेहत का ध्यान रखना हमारे लिए सबसे बढ़कर है। ' 'नहीं बेटा ,मेरे पास एक भी फल नहीं पहुँचा। अगर फल मिल जाते तो मै यों सूखकर कांटा क्यों बन जाती ?मै जानती हूँ कि तुम अपनी माँ के लिए जान भी दे सकते हो फिर यह तो फलों की बात है। 'माँ ने कहा।  नन्दीष ने सोचा-विचारा। सेवकों की चालाकी समझ में आ गई। उसी वक्त हिमालय पहुँचकर सारी बात अपने छोटे भाई को बताई और कहा-,'भाई ,मै घर पर रहकर माँ की देखभाल करुँगा और तुम ...

धर्म-संस्कृति--जड़मूर्ति गन्ध ग्रहण नहीं करती

एक प्रकाण्ड विद्वान के मन में प्रौढ़ावस्था में देवोपासना की विशेष रूचि जगी। बाजार से बालगोपाल की पीतल की मूर्ति लेकर विधिपूर्वक प्राणप्रतिष्ठा करवा कर सिंहासन पर रखकर पूरी लगन  से पूजा करने लगे शास्त्रज्ञांनी थे ,इसलिए शास्त्र में अटल विश्वास एवं श्रद्धा थी। छः वर्ष निकल गये। 'गोपाल 'का प्रत्यक्षीकरण नहीं हुआ। ज्यों-ज्यों समय बीतता ,पण्डितजी अधिक उत्साह ,लगन ,निष्ठा एवं सावधानी से पूजा-अर्चन करते ,पर कहां तक करते ? एक दिन उनका संयम जवाब दे गया। उन्होंने सोचा कि छः वर्ष बीत गये। अभी तक गोपाल के दर्शन नहीं हुए। 'उन्होंने बड़ी सावधानी से निरीक्षण किया ,कही कोई त्रुटि दृष्टिगत नहीं हुई।  तभी उन्हें किसी से ज्ञात हुआ कि भगवती दुर्गा 'माता 'होने के कारण उपासक को शीघ्र ही दर्शन देती है। तब उन्हें माता की उपासना करने की ललक लगी। उन्होंने 'बाल गोपाल 'को सिंहासन से ऊपर एक ताक में रख दिया तथा बड़ी श्रद्धा से' भद्रकाली 'की मूर्ति उस सिंहासन पर रखकर पूजा-अर्चन करने लगे। दिन-पर-दिन बीतने लगे। वही लगन ,वही निष्ठां ,सावधानी। ब्रह्म-मुहूर्त से मध्याह्न ,संध्या ,फिर स...

बंगाल की 'जगद्धात्री पूजा' दुर्गा का ही पर्याय है !

जगद्धात्री का तात्प र्य है जगधात्री अर्थात सम्पूर्ण संसार (जगत )की रक्षा व संवर्धन करने वाली सुप्रीमो अर्थात शक्तियों का पुंज या स्त्रोत। श्री रामकृष्ण के अनुसार माँ ने सम्पूर्ण जगत को पकड़ कर (थामे ) रखा है अगर वे नहीं थामेंगी तो सारा जगत (संसार ) खत्म हो जायेगा ,और यह कथन आदिशक्ति माँ दुर्गा और जगद्धात्री दोनों पर लागू होता है। यह स्तुति से साफ प्रलक्षित होता है-' जयदे जगदानन्दे जयदे कृपा पूजते। जयः सर्वगते दुर्गे जगद्धात्री नमस्तुते। ' कहते है कि सर्वप्रथम बंगाल में जगद्धात्री पूजा मनाने का श्रेय श्री रामकृष्ण की पत्नी माता शारदा देवी को जाता है।,जिन्हें बंगाली समाज ;देवी 'का अवतार मानकर पूजते है।  अन्य पौराणिक देवताओं की तरह' ',जगधात्री' ,करीन्द्रसुरनिसुदिनी (हाथी दानव को मारने वाली ),माहेश्वरी (महान देवी ),शक्ताचार्यप्रिया ,शाक्तसंप्रदाय की सुप्रीमो तथा विश्व कीआधार भूता संवाहक है। इनकी पूजा गोपाष्टमी से दशमी तक की जाती है। विश्व की रक्षिका ' माँ जगधात्री पूजा' काली पूजा के बाद होती है। 'जगधात्री 'अपने नाम के अनुरूप संसार की परम रक्षिक...

धर्म-संस्कृति--'जब तुलसीदास जी ने ज्योतिष के प्राण बचाए

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ज्योतिष गंगाराम गोस्वामी तुलसीदासजी के सखा और परम प्रशंसक थे। प्रतिदिन दोनों संध्या समय साथ-साथ गंगा के तट पर जाते एवं संध्या-वंदन करते थे। फिर कुछ देर तक सत्संग भी होता था।  एक दिन गंगाराम बहुत उदास थे ,उन्होनें गोस्वामीजी से निवेदन किया--'आज मै आपके साथ गंगा-घाट पर न जा सकूँगा ,क्षमा करें। ' गोस्वामी जी ने गंगाराम से उनकी उद्धि ग्नता का कारण पूछा। गंगाराम ने बताया कि--' कल काशी  के राजकुमार अपने कुछ सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार के लिए गये थे। संध्या समय उन्हें लौटना था ,पर अभी तक नहीं लौटे ,आज सिपाहियों ने लौटकर बताया कि जंगल में उनलोगों ने कुछ क्ष त वि-क्ष त शव देखे है। लगता है राजकुमार अपने अंगरक्षक के साथ जंगल में भटक गए थे और बाघ आदि किसी हिंसक पशु के शिकार हो गये। सारे राजमहल में को हराम मचा है। राजा ने मुझे बुलाया था। उनका मानसिक संतुलन भी गड़बड़ हो गया है। उन्होंने कहा-'गंगारामजी ,राजकुमार की विषय में सगुन करो। अगर सगुन ठीक निकला तो पुरस्कार पाओगे ,अन्यथा प्राण-दण्ड दिया जायगा। मैने कल तक का समय ले लिया है। न तो मै त्रिकालज्ञ हूँ और न ज्योतिष-ज्ञान...

बाल कहानी -हिमालय तो देख लिया

सुंदरवन में ब्लैकी भालू ,कैटी बिल्ली ,चीकू खरगोश और रेटू चूहा 4 दोस्त रहते थे। उनमें आपस में बहुत गहरी मित्रता थी। वे चारों सुंदरवन के मॉर्डन स्कूल में एक ही क्लास 5 में पढ़ते थे। जहाँ ब्लैकी भालू पढ़ने में बहुत तेज था, वही कैटी बिल्ली आर्ट एन्ड क्राफ्ट में बड़ी होनहार थी। तो चीकू खरगोश की जनरल नॉलेज बहुत कमाल की थी। वह रोज पेपर पढ़ता था और टीवी पर समाचार देखता था। वही रेटू चूहा खेल-कूद में बहुत रूचि रखता था। उनके स्कूल में खेल का बहुत बड़ा एक मैदान था। जहाँ आये दिन स्पोर्ट्स होते रहते थे। जिसमे रेटू चूहा हमेशा पार्टीशिपेट करता और अव्वल आता।  चारों एक-दूसरे की मदद किया करते थे।  उन्हें प्रकृति के बारे में जानने की बहुत ललक और जिज्ञासा रहती थी। एक बार उनके स्कूल की छुट्टियाँ पड़ी। इस बार ब्लैकी भालू की दादी माँ आई थी ,जो उन्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाया करती थी। तभी उन्हें दादीमाँ ने 'हिमालय पर्वत 'के बारे में बताया था कि ,-'वह दुनिया का सबसे ऊँचा व खूबसूरत पहाड़ है। ' तभी से उन चारों दोस्तों का  मन ' हिमालय ' को नजदीक से देखने के लिए मचल उठा। इतफ़ाक से उन चारों क...

मनोरंजन-टेसू के रंग ,बदले मन !

एक गांव में सलोनी नामकी एक लड़की अपने माता-पिता के साथ बहुत निर्धनता के दिन गुजार रही थी। उसका परिवार पास के जंगल में जाकर लकड़ियां काटता और वहाँ से टेसू के फूल भी बटोर लाते। जंगल में टेसू के फूलों के पेड़ थे। जब बहार आती तो पेड़ टेसू के लाल-लाल फूलों से लद  जाता, तब सलोनी के अभिभावक फूलों को तोड़कर गांव में बेच देते थे। होली के दिन गांव वाले फूलों का रंग बनाकर,उस रंग से होली खेलते।  एक दिन की बात है !टेसू के फूल बटोरते समय सलोनी खेलती हुई कुछ आगे निकल आई थी कि अचानक बहुत जोर की आंधी चली और जंगल में अँधेरा पसर  गया। सलोनी के माता-पिता भी गायब हो गये ,अपने माता-पिता को न पाकर वह रोने लगी। रोती -बिलखती सलोनी  घने जंगल में चली गई और एक टेसू के पेड़ के नीचे बैठकर सुबकने लगी  बच्ची को अकेली रोती देखकर वनदेवी को दया आ गयी। वे एक बुढ़िया का वेश धरकर उसके पास आकर उसके  सिर पर हाथ फिराकर बोली ,-'बेटी !रो मत। तुम्हारे माता-पिता को काली घाटी में रहने वाला काला दानव उठाकर ले गया है। वह आंधी बनकर आता है और मनुष्यों को उठाकर ले जाता है ,फिर उन्हें गुलाम बनाक...

मनोरंजन-'अपमान ने विद्वान बनाया

कालिदास अपने प्रारंभिक जीवन में बिल्कुल मूर्ख, अनपढ़ और गंवार थे। कुछ लोग इन्हें मूर्ख ब्राह्मण और कुछक लकड़हारा बतलाते है। इनके जीवन का पूर्व वृतांत स्पष्ट नहीं है। एक समय स्वयंवर प्रथा के अनुसार राजकुमारी विधो तमा ने शर्त रखी कि -' जो योग्य पुरुष मेरे प्रश्नों का सही उत्तर दे सकेगा,उसी से मेरा विवाह होगा। ' शर्त के अनुसार बड़े-बड़े योग्य विद्वान भी उसके प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ रहें। विधोतमा ने अवहेलनापूर्वक उन्हें बहिष्कृत कर दिया। विद्वानों ने इस घोर अपमान का बदला लेने की भावना से किसी मूर्ख से राजकुमारी का विवाह कराने की मन में ठान ली और खोज में उन्हें कालिदास ही मिल गये जो पेड़ पर चढ़कर उसकी वही डाल काट रहे थे जिस पर वे चढ़े थे। विद्वानों ने सोचा अब इससे बड़ा मूर्ख हमें नहीं मिलेगा। कालिदास को बड़े आदर से उनलोगों ने बुलाया और राजकुमारी से विवाह करा देने का लालच देकर उन्हें खूब सजाकर स्वयंवर में ले गये। वे बोले कि-'राजकुमारीजी !ये हममें सबसे बड़े विद्वान हमारे गुरु है ,पर ये मौन व्रत धारण कर रखे है। आप जो भी प्रश्न करेंगी तो उसका उत्तर ये इशारे से ही देंगे। ' र...

धर्म-संस्कृति-रामायण और तीन राजतिलक

रामायण में हमने सुग्रीव ,विभीषण और राम का राजतिलक देखा। बाल्मीकि रामायण में किष्किन्धा ,लंका और अयोध्या 3 राज्यों का उल्लेख है। इस महाकाव्य के पन्नों पर कितने उत्तर-चढ़ाव देखने को मिले। तीनों राज्य के राज्य कर्ता बदलते है। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि तीनों में ज्येष्ठ भ्राता ही राज्य से वंचित होते है और छोटे भाई राज्य प्राप्त करते है।  अयोध्या राज्य शेष दोनों राज्यों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करता है। दोनों भाई एक दूसरे पर राज्य का त्याग करते परिक्षिलित होते है। बड़ा भाई किसी दोष के कारण राज्य से वंचित नहीं होता बल्कि अपनी इच्छा से छोटे भाई को समर्पित करता है। शेष दो में काफी संघर्ष होता है। बड़े भाई राज्य से पहले प्राणों से हाथ धो बैठते है और छोटे भाई ,बड़े भाई की मृत्यु और राज्य चाहते है।  अयोध्या में कितनी महत्वपूर्ण और असाधारण बात प्रकट होती हैकि यहाँ दो भाई एक-दूसरे पर राज्य को वारने  पर आपस में प्रतिस्पर्धा करते है। ब्रह्मचारियों जैसा जीवन बिताते है....... ।  इसका मतलब यह नहीं है कि सुग्रीव और विभीषण लोभी थे या प्रबल महत्वाकांक्षी या किसी दृष्टि से भ्रष...

धर्म-संस्कृति-जब भगवान विष्णु ने स्वप्न देखा !

एक बार भगवान विष्णु वैकुण्ठनाथ में सोये हुए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि सैकड़ों चन्द्रमाओ की कान्तिवाले ,त्रिशूल डमरूधारी स्वर्ण आभूषणयुक्त ,इन्द्र वंदित ,त्रिलोचन महादेव प्रेम और आनन्द से उन्मक्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे है। उन्हें देखकर विष्णुजी हर्ष से गद्गद हो गये और शैय्या से उठकर बैठ गये और कुछ देर तक ध्यान मग्न ही बैठे रहे। उन्हें इस प्रकार बैठे देख ,लक्ष्मीजी ने पूछा ,-'भगवन !आप ऐसे क्यों बैठे है ?' भगवान विष्णु कुछ देर यूँ ही आनन्द में मग्न रहे। फिर थोड़े स्वस्थ होने पर गद्गद कण्ठ से बोले ,-'हे देवि !मैने अभी स्वप्न में महादेव के दर्शन किये है। उनकी छवि अपूर्व आनंददायक और मनोहारी थी। लगता है कि भगवान शंकर ने मुझे याद किया है। अहोभाग्य !चलो देवि ,कैलाश चलकर महादेव के दर्शन करें। 'दोनों कैलाशपुरी की ओर चल दिये। कुछ दूर जाने पर भगवान शंकर स्वयं भवानी गिरजा के साथ उनकी ओर आते दिखे। अब विष्णु भगवान के आनन्द का क्या ठिकाना ?… घर बैठे ही उन्हें निधि मिल गयी। पास आने पर दोनों आपस में गले मिले ,मानो आनन्द का सागर उमड़ पड़ा हो। दोनों के आँखों से आनन्द की अश्रु -सर...

धर्म-संस्कृति-'जब इन्द्र का हविष्य सीताजी ने ग्रहण किया !

रामायण की यह कथा तो प्रायः अधिकांश लोगों को मालूम है कि वानरों के राजा सुग्रीव ने अपने मंत्री हनुमान को सीताजी का पता लगाने के लिए राक्षसराज रावण की लंका भेजा था और उन्होनें पता भी लगाया था ,पर इस कथा को बिरले ही लोग जानते होंगे कि ब्रह्माजी की आज्ञा से देवराज इन्द्र ने निद्रा (योग माया )सहित लंका जाकर सीताजी को 'दिव्य खीर 'अर्पित की थी और सीताजी को रावण द्वारा दी गयीं प्रतारणा से हो रहे कष्ट को कम करने में मदद दी थी।  ब्रह्मा ने इन्द्र को सीताजी के पास क्यों भेजा था ? इसकी कथा वाल्मीकि रामायण में है ,हालांकि गोस्वामी तुलसीदास एवं अन्य विद्वानों ने इसे नहीं लिखा है।  रावण के आंतक से सभी ऋषि -महर्षि ,देवता ,संत आकुल और व्याकुल थे। वैसे लौकिक रीति  से सीताहरण के बाद राम अत्यंत व्याकुल हो गये थे परन्तु सृष्टि कर्ता ब्रह्माजी को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सीताजी को हरण कर रावण लंका में ले जाकर रख दिया है। इस घटना को उन्होनें तीनों लोकों के हित और राक्षस कुल के विनाश के रूप में माना था और इन्द्र को बुलाकर अपना आशय बताया कि -'देवराज !सदा सुख में पली जगदम्बा स...

धर्म-संस्कृति--ओर कुब्जा ,कृष्ण की 'अनन्या 'बन गयी !

दुराचारी और अत्याचारी कंस ने अपने भांजे को बाल्य काल से ही मारने , के अनेकों प्रयत्न किये। पूतना ,तृणावर्त ,अघासुर ,बकासुर ,धेनुकासुर आदि मायावियों ने अपनी संहारिक माया शक्ति के बल से बालक कृष्ण को मारने के भरकस प्रयास किये ,किंतु वे उनका बाल भी बांका न कर सकें उलटे कृष्ण के हाथों मारे गये। लाचार और हताश होकर उसे अपने हाथों मारने के विचार से कूटनीतिक चाल से नन्द सहित कृष्ण-बलराम को गोकुल से मथुरा में बुलाया। नंदबाबा को कंस का आमंत्रण स्वीकारा करना पड़ा क्योंकि कंस की आज्ञा 'राजाज्ञा 'थी. छकड़ों पर दही माखन के मटके सजा-सजा कर रखें गये। सब लोग कृष्ण -बलराम को लेकर मथुरा चल पड़े। गोकुलवासी यथा समय मथुरा पहुँच गये। नगर से बाहर उनके ठहरने के लिए शिविर की व्यवस्था कर दी गयी।  अब दोनों भाई निडर होकर मथुरा के 'नगर भम्रण को जाने की लिए नंदबाबा की आज्ञा लेने आये ,वैसे वे जानते थे कि कंस बहुत पापात्मा है वह कुछ भी नीच हरकत कर सकता है ,फिर भी बालकों का मन देखकर आज्ञा दे दी।  इधर कंस ने मुष्टिका और चाणूर जैसे विकराल पहलवानों से कुश्ती लड़ाकर कृष्ण -बलराम को मरवाने का कुच्रक रचा तथा इ...

मनोरंजन--'सबकुछ सिखा जा सकता है

बात बहुत  समय पहले की है। एक बार एक राजा के दरबार में नट-नटी अपना करतब दिखाने आये। राजा को उन लोगों का खेल बहुत अच्छा लगा। नटों के पास एक दस वर्ष की लड़की भी थी। उसका करतब देखकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ पर रानी के मन में किसी भी तरह का कौतुहल पैदा नहीं हुआ। राजा ने पूछा -'रानी !क्या बात है ?लड़की का नृत्य तुम्हें केसा लगा ?' रानी बोली -'महाराज !इसमे क्या आश्चर्य है। अभ्यास से सब कुछ सीखा जा सकता है। आश्चर्य तो देखने वालों को हो रहा है ,क्या खेल करनेवालों को भी इसमे आश्चर्य हुआ है ?' राजा नाराज हो गया तथा रानी से कहा -'ठीक है तो तुम्हें एक साल का समय देता हूँ ,कुछ आश्चर्यजनक करतब करके दिखाओ। 'रानी ने सहर्ष मान लिया।  कुछ दिनों बाद महलों में एक भैस के बच्चा पैदा हुआ। रानी भैंस के बच्चे को लेकर रोज सात तल्ला चढ़ती और उतरती थी। एक दिन  राजा से कहा -'राजाजी !आप सभा बुलाइये मै आश्चर्यजनक करतब दिखने को प्रस्तुत हूँ। ' सभा में रानी ने भैंस को लेकर खड़ा कर दिया और सभा को संबोधित करके बोली -'कोई ऐसा वीर है जो भैंस को सात तल्ला ले जाकर वापस ल सके। ' ...

मनोरंजन-'देवलोक से हिरण मंगवाये !

कोरिया के सिओल नगर में एक दरिद्र मगर मेहनती मछुआरा रहता था। वह निसंतान था। प्रतिदिन झीलों से मछलियाँ पकड़ उन्हें बेचकर अपना तथा पत्नी का पेट पालता था। धीरे-धीरे झीलें सूखने लगी। इससे मछलियाँ भी मिलनी कम हो गयी और गर्मियों का मौसम आते-आते-सारी झीलें सूख  गयी। एक दिन एक झील की सूखी तलहटी में एक बडे  से  मेढ़क को फुदकते देख मछुआरे को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा कि सारी मछलियाँ तो यह मेढ़क खा जाता था। तभी मेढ़क ने मनुष्य की भाषा में कहा--'गुस्सा मत करो .... मेरी वजह से तुम्हारा भाग्य बदलने वाला है ,इसलिए मुझे अपने घर ले चलो। ' मेढ़क को बोलते देख उसकी सिटी-पिटी गुम हो गयी। वह उलटे पैर बिना उत्तर दिये लौट गया ,साथ में उसे गुस्सा भी आ रहा था कि इतना तुच्छ सा जीव ,उसके घर में रहने की जुर्रत कर रहा है! घर पहुँचकर  देखा कि वह मेढ़क उसकी मछुआरिन से घर में रहने की विनती कर रहा हे --'माँ !मुझे अपना बेटा बनाकर घर में रखलो। मै तुम्हारे बहुत काम आऊंगा। ' ममता की मारी मछुआरे की पत्नी ने उस पर दया करके ,घर के एक कोने में उसका बिस्तर तैयार कर दिया साथ में गर्मा-गर्म भोजन ब...

एक और पन्ना - लघु कथाये

बताओ इसमें से आयशा कौन है ?"... बार -बार डकैतों के पूछने पर बेड पर सोई दो बच्चियों में से एक बच्ची की और डरते हुए इशारा कर दिया। …। ऐसा करके उसने इतिहास को पुर्नजीवित कर दिया। । और एक पन्ना धाय के त्याग का उदाहरण दे दिया।  अकस्मात हवेली पर हमला हुआ। .... ठाकुर -ठकुरानी को उनके सौतेले भाईयों के भेजे गुंडों ने बेदर्दी से मर डाला ,बस बसंती ही उनकी १० वर्षीया बेटी आयशा और उसकी समवयस्क अपनी बेटी महुआ के साथ आयशा के कमरे में थी। बाहर के भयानक शोर से आंतक कित होकर न जाने किस भावावेश में महुआ को भी आयशा के बेड पर साथ सुलाकर गिलाफ ओढ़ा दिया। …। तभी दनदनाते हुए ,लूटपाट मचाते हुए डकैतो ने उस कमरे में आकर पूछा ,तो उसने एक बार भी अपनी बच्ची के बारे में नहीं सोचा। .... दिल पर भारी पत्थर रखकर उसे अपने फर्ज पर निछावर कर दिया ,और आयशा को सही सलामत उसके ननिहाल पहुंचा दिया।  उसकी ममता ,अंतरात्मा बोल रही थी कि -भगवान इतना कठोर नहीं हो सकता ,वह उसकी महुआ को बचाए रखेगा और एक न एक दिन उससे जरूर मिलवायेगा। …  ७ साल बाद वह दिन भी आया ,जब उसने प्रश्न किया -"तुमने मेरा बलिदान क्यों किया ?क्यू...

त्वचा के लिए गुणकारी है रसोईघर के उपहार

प्रकृति दवारा प्रदत अनेक उपहार हमारे किचन में उपलब्ध है। इनका हमारी स्किन पर कोई विपरीत  भी  प्रभाव नहीं पड़ता।  यहाँ प्रस्तुत है कुछ उदाहरण - -- ऑइली स्किन के लिए ----- दस चम्मच बेसन आधी चम्मच से थोड़ी कम हल्दी में कच्चा दूध या पानी मिलाकर गाढ़ा घोल करे फिर चौथाई चम्म ० सरसों या तिल या जैतून तेल मिलाकर इतना फेंटे कि गाढ़ा लेप  (पेस्ट ०)बन जाये। इस उबटन को चेहरे पर लगाने से झाइयां ,दाग ,झुर्रियां और कालिमा दूर होती है चेहरे के अनावश्यक बाल भी झड़ जाते है।  ० -डार्क सर्कल्स के लिए --रुई के फाहे को खीरे के रस में या खीरे और आलू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर आँखों पर 10 -15 मिनट रखें। कुछ दिनों में त्वचा अपने स्वाभाविक रंग में आ जाएगी। काले घेरों को दूर करने    के लिए    फ्रिज में यूज़ की हुई टीबैग्स ठंडी करके 10 मिनट आँखो पर रख सकते है।  ० -पिंपल्स के दाग व धब्बे के लिए ---रोज एक पके टमाटर के गूदे में नींबू के रस की कुछ बूंदे डालकर सुबह -शाम चेहरे पर पैक की तरह लगाए,सूखने पर धोले। ऐसा करते रहने से कुछ दिनों में त्वचा दाग रहित और ...

नुकसान

जूट मिल को भयंकर आग में धू -२ कर जलकर खाक होते देख ....... दीनू का बूढ़ा शरीर तपती जेठ की की गर्मी में ठंड से ठिठुरने लगा....... दो दिन से बुखार चढ़ा था।  झुरझुरी लेकर बुखार का ताप बढ़ने लगा  और वह  कांपने। .... लगा ,समूचे शरीर का लहू ,सर्द होकर उन बूढ़ी होती हड्डियों में जम गया।  कितनी अपेक्षायें , आशाये टिकी थी। … इस जूटमिल से। … बेटी के हाथ पीले करने .... बेटे को अपनी जगह ,बदली पर लगाना ,घरवाली के तपेदिक का इलाज का खर्चा। … ।  काफी मेहनती व ईमानदार   था ,दीनू ,दिनभर  हाड़तोड़  मेहनत के बाद। … रात को मिल की चौकीदारी भी करता।  मालिक भी उसके काम से संतुष्ट और प्रसन्न थे। कह रहे थे--'तेरी बिटिया ,हमारी बेटी जैसी ---लखिया के गौने की विदाई में जो भी आवभगत होगी उसका जिम्मा [खर्चा ]हमारा     दीनू तो निहाल हो गया     …। क्या देवता तुल्य मालिक है। …। झुर्रीदार आँखे ख़ुशी से भरने लगी थी। साहब को खुश और मूड अच्छा देख ,उसने संकोच से कहा -----'मालिक ,अगर आप मेरे दामाद को अपने मिल में नौकरी -----------बड़ी मेहरबानी ---।...

कविता- कौन किसके लिए ?

कानून तो बनाये ही जाते है तोड़ने के लिए  वादे किये जाते है न निभाने के लिए  सूरज तो उगता ही है डूबने के लिए  दिन ढलता है शाम होने के लिए    हवा तो होती ही है साँस लेने के लिए  दिल धड़कता हे प्यार के लिए बादल तो गरजते ही है बरसने के लिए  नदियाँ बहती है सागर में मिलने के लिए  दोस्त तो होते ही है बिछुड़ने के लिए  फूल खिलते है एकदिन मुरझाने के लिए  माँ तो होती ही है अपने लाल को पालने के लिए  पिता होता है अपने परिवार को सँभालने के लिए  पत्नी तो होती ही है साथ निभाने के लिए  माता -पिता होते है आशीर्वाद  देने  के लिए 

कहानी चापलूसी का दंश बहुत पीड़ा देता है

एक बार राजा विक्रमादित्य का दरबार लगा हुआ  था.।  सभी विद्जन, सामंत ,योद्धा और नवरत्न भी बैठे थे। अचानक एक सामंत के गाल पर एक मक्खी आ बैठी। उसने अपने गाल पर तमाचा मारकर मक्खी को उड़ाना चाहा तो राजा का ध्यान भी उस और चला गया जब उन्हें मालूम हुआ कि मामला एक मक्खी का है तो वे बोले-'मक्खी तो इतना काटती भी नहीं ,जितना एक बिच्छू काटता है। 'अब सभा में इस मुद्दे पर बात चलने लगी कि' कौनअधिक काटता है ? राजा ने यह प्रश्न सभी सभासदों से पूछा। किसी ने कहा-मधुमक्खी ,किसी ने ततैया ,तो किसी ने बिच्छू ,तो किसी ने गोहरा ,किसी ने साँप कहा। वररुचि और कालिदास केवल चुप बैठे थे।  राजा ने उनसे मुखातिब होकर पूछा-'भई ,आप दोनों क्यूँ नहीं बोल रहें ?आपका क्या अभिमत है ?इस विषय पर ' वररुचि ने बड़े सधे हुए अंदाज से कहा-'राजन ,इन सबसे गहराई से काटता है निंदक। जले-कटे या व्यंग्य भरे वचनों के डंक इन सब के काटने से अधिक जहरीले होते है। ' सबने वररुचि के इस कथन की शैली की बहुत तारीफ की। अब कालिदास से पूछा गया कि उन्हें अपनी ओर से तो कुछ नहीं कहना। कालिदास ने कहा-'राजन ,यह सच है कि नि...

पराशक्ति भगवती पराम्बा दुर्गा तीनों लोकों की आधारभूता है

पराम्बा विश्र्व के कल्याण के लिए कभी गौरी-रूप में आती है ,कभी दुर्गा-रूप में। ब्रह्मा की प्रार्थना पर मधु-कैटभ के उद्धार के लिए महाकाली -रूप में वे अवतीर्ण हुई तथा रम्भा पुत्र महिषासुर के उद्धार के लिए महालक्ष्मी -रूप में अवतीर्ण हुई और शुभ-निशुम्भ के उद्धार के लिए महासरस्वती-रूप से अवतीर्ण हुई थी  आदिशक्ति को दुर्गा इसलिए कहा जाता है कि ये अपने भक्तों की दुर्गति को नष्ट कर देती है। दुर्गमासुर के मरने के बाद आदिशक्ति का नाम दुर्गा नाम विख्यात हो गया।  मार्कण्डेयपुराण में अष्टमातृकाओं के आविर्भाव की कथा इस प्रकार है-शुम्भ-निशुम्भ 2 अहंकारी असुर थे जिन्होंने छल-बल से देवताओं के स्थान और यज्ञ भाग छीन लिए थे ,तभी देवताओं को आदिशक्ति का दिया वचन याद आया-'जब-जब असुरों द्वारा बाधा आ उपस्थित होगी ,तब-तब मै अवतार लेकर उसे दूर कर दिया करुँगी। ' आदिशक्ति की शरण में जाकर वे सामूहिक रूप से उनका स्तवन करने लगें। करुणामयी पराम्बा ने प्रकट होकर आश्वस्त करके विदा किया और स्वयं अपने अलौकिक सौन्दर्य से हिमालय की शोभा को सँवारती हुई विचरण करने लगी तभी शुम्भ के सेनापति चण्ड -मुण्ड ने माता क...

भूर्ण हत्या किस सभ्य समाज का घोतक है !

  अमेरिका में सन  1984 में एक सम्मेलन हुआ था। जिसमे चर्चा का विषय था ''नेशनल राइट्स टू लाइफ -कनवेंशन "  गर्भपात को एक जघन्य मानवीय अपराध बताते हुए जिन वैज्ञानिकों और विचारकों ने विचार व्यक्त किये उनमें एक प्रतिनिधि  थे ,डा,बनार्ड नेथेन्सन।         उन्होंने गर्भपात पर बनाई गई एक अल्ट्रासाउंड फिल्म "साइलैंट स्क्रीम"  (गूँगी चीख) का बड़ा लोमहर्षक विवरण दिया था। उन्हीं के शब्दों में  "गर्भ की वह मासूम बच्ची दस सप्ताह की थी। हम उसे अपनी माँ की कोख में खेलते ,करवट बदलते ,अंगूठा चूसते हुए देख रहें थे। 120 की साधारण गति से धड़कते उसके दिल की धड़कनों को भी हम देख पा रहें थे। सब कुछ बिल्कुल सामान्य था किन्तु जैसे ही पहले औजार [सक्शन -पम्प ]ने गर्भाशय कीमें दीवार को छुआ वह मासूम बच्ची डरकर एकदम घूमकर सिकुड़ गई। उसके दिल की धड़कन काफी बढ़ गई। उसे शायद अनुभव हो गया था कि कोई चीज उसकी आराम गाह ,उसके सुरक्षित क्षतर पर हम ,हमला करने जा रहीं है। ;हम दहशत भरी आँखों से देख रहे थे कि किस तरह वह औजार उस नन्हीं मासूम गुड़िया -सी बच्ची के टुकड़े -टुकड़े कर ...

फ्रिज रहे साफ तो सेहत न हो खराब

फ्रिज आज हर घर की जरूरत बन गया है लेकिन इसका दुरूपयोग इसमें रखे खाने के सामान को प्रदूषित कर सकता है। तो आइये,कुछ ऐसी बातें जानें जिनसे फ्रिज में रखा सामान भी हाइजनिक रहे और हमारा स्वास्थ्य भी ---- ० फ्रिज में पकाए हुए भोजन को हमेशा ढककर रखें। इन्हें हमेशा ऊपर वाली शेल्फ में रखें तथा १-२समय में ही खा लेना चाहिए।  ० दूध ,दही ,मलाई ,खीर आदि फ्रिज में ढक  कर  रखें गुंथे आटे को अच्छी तरह ढककर या एयरटाइट डब्बे में रखें। खुला रखने पर आटे की ऊपरी परत बेहद कड़ी हो जाती है।  ० प्याज ,लहसुन ,अदरक जैसी तेज गंध वाली चीजों को पीसकर रखना हो तो एअर टाइट डब्बे में ही रखें। खरबूजा। कटा आम ,फल आदि फ्रिज में न रखें ,क्योंकि इनकी तेज गंध से फ्रिज में रखी अन्य खाध सामग्री के  स्वाद   पर असर पड़ता है।  ०अंगूर ,सेब तथा पपीता जैसे फल यदि फ्रिज में रखने हो तो उन्हें धो पोंछ कर अखबारी कागज में लपेटकर कर रखें। इससे फलों की महक अन्य खाने की चीजों को प्रभावित नहीं करती है।  ० सब्जी को बाजार से लाकर धो पोंछ कर ,आजकल मिल रही शॉपिंग मॉल की सब्जी की थैलियों व नेट की पैके...