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Showing posts from 2017

'क्या यें मानसिक अपराधी भी गुड़ टच और बेड टच के मायने समझते हैं ?..'

सरकार ने बच्चो की सुरक्षा  लिए यह नियम लागू किया है कि अब से कॉन्डम के विज्ञापन रात को 10 बजे के बाद दिखाए जायेंगे तथा स्कूलों के पाठ्य क्रम में गुड टच और बेड टच का एक सबक भी पढ़ाया जायेगा। तो ये बात उन मानसिक रूप से बीमार तथाकथित  पढ़े -लिखे टीचरों के कैसे बताई जायेगीं ?..  ?  आखिर उन्हें भी तो कोई ऐसा सबक या नियम सिखाया या पढ़ाया जाये कि भई अबोध और  नन्ही -मासूम बच्चियों को तो बक्श दें !ऐसे मानसिक विकृतियों वाले पिशाचों से हम कैसे इन्हे बचाएंगे ?ये दरिंदे तो इंसानी खाल में हर जगह मौजूद रहेंगे।  इनके डर से हम अपने बच्चियों की  कहां- कहां तक कैसे और कब तक रखवाली कर सकेंगे ?-.. स्कूल बस या ,वैन, स्कूल ,पार्क और यत्र-तत्र सर्वत्र कही भी तो सुरक्षित नहीं हैं। आये दिन स्कूलों में इसके ऐसी घटनाओ के अलावा बुलिंग और हत्याएं जैसी अप्रत्याशित  वारदातें भी  होती रहती हैं जिससे अभिभावक और छात्र बहुत डरे  हुए रहते हैं। कितने बच्चे तो डरके मारे स्कूल ही नहीं जाना चाहते हैं तथा अभिभावक भी उनकी सुरक्षा के लिए चिंत...

पाठकों की कलम से -----ऐसे -मानसिक विकृति के लोगों की समाज में जगह नहीं हैं !

आदरणीय सम्पादक महोदय ,                                                 एक हाईप्रोफाइल स्कूल में एक 4 साल की मासूम  बच्ची से उसी स्कूल के  सो कॉल पढ़े-लिखे 2 टीचरों ने रेप किया !  यह समाचार पढ़ते हीमैं  सन्न रह गयी। यह कैसे जानवर हैं ? जो ऐसी मनोविकृत सोच रखते हैं ?..  जिस देश में छोटी-छोटी बच्चियों को  माँ दुर्गा का विभिन्न रूप मानकर नवरात्रों में आदर-सत्कार से  पूजा जाता हैं वही ऐसी विकृत -बीमार सोच वाले जानवरों को खुला छोड रखा  है, कैसे वे मासूम बच्चियों के प्रति ऐसी कुत्सित सोच रख सकते  हैं ?  ऐसे  घृणात्मक कृत्य को अंजाम देने का शर्मनाक कांड भी कर गुजरते है?..  इनके तो अंग-प्रत्यंग छिन्न -भिन्न करके नपुंसक बना देना चाहिए  ताकि   ये जीवन भर  पुरुषत्व से वंचित हो जाए और जीवित रहकर इस संत्रास को झेलें। मेरी समझ में ऐसे पशुवत कार्य के लिए और कोई सजा समझ में नहीं आती। वैसेत...

महात्मा बुद्ध एक क्रान्तिकारी और सुधारवादी आंदोलन के एक शांतिदूत थे

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई .पूर्व वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।  आज विश्व के कोने-कोने में वैशाख पूर्णिमा के शुभ अवसर को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता हैं और  जिस पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें कठिन तपस्या कर बोधिसत्व प्राप्त हुआ था उसका रोपण भी वैशाख पूर्णिमा को हुआ था।  सिद्धार्थ के रूप में भगवान गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी नामक स्थान पर राजा शुद्धोधन के यहां हुआ। पिता शाक्य वंश के क्षत्रिय राजा शुद्धोधन और माता कौशल वंश की राजकुमारी महामाया थी। बचपन में माता की मृत्यु होने पर उनका लालन -पालन विमाता गौतमी ने किया। ज्योतिषियों के अनुसार -'-बालक सिद्धार्थ यदि चक्रवती सम्राट नहीं बन पाया तो सन्यासी हो जाएगा। 'राजा शुद्धोधन ने भोग-विलास के वातावरण में रखते हुए मात्र 18 वर्ष की किशोरावस्था में अत्यंत रूपसी राजकन्या यशोधरा से उनका विवाह कर दिया। एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल अर्थात बंधन रखा गया। पर विधि का विधान जीवन को मोहमाया मानते हुए 21 वर्ष की युवावस्था में ज्ञान की खोज में आधी रात को पत्नी-बच्चे को सोता हुआ छोड़कर महल से निकल...

समय का पालन

राधामोहन सुप्रसिद्ध पंडित थे। उस दिन शाम को समस्तपुर के जमींदार की अध्यक्षता में उनका सम्मान संपन्न होनेवाला था। उनका इरादा था कि उस अवसर पर एक संदेशात्मक कविता सुनाऊं। वे इसी विषय को लेकर तीव्र रूप से सोचने लगे। सूर्योदय -अस्तमन ,दिन-रात ,पूर्णिमा ,अमावास ,ग्रीष्म ,पावस सबके सब निश्चित समय पर आये हैं। प्रकृति का हर अणु समय का पालन करता हैं।  मनुष्य को अन्य जंतुओं से अलग करता हैं ,अनुशासन।  अनुशासन का प्रथम व अंतिम चरण हे ,समय का पालन। प्रगति चाहनेवाले हर व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है समय का पालन। यह उसकी सांस के बराबर है  .उन्होंने सोचा कि यह सन्देश आज के वातावरण के अनुकूल रहेगा ,क्योंकि मंत्री ,नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सभी अपनी-अपनी ड्यूटी पर विलम्ब से पहुंचते हैं और समय का मूल्य नहीं समझते। इसलिए इस अर्थ की कविता रचने के लिए वे दीर्घ सोच में पड़ गये।  उस दिन दोपहर को उन्होंने जमींदार के यहां स्वादिष्ट भोजन किया ,जिसकी वजह से उन्हें थोड़ी देर से निकलना पड़ा। थोड़ी दूर जाने के बाद घोड़ागाड़ी की गति बढ़ गयी। वे उस वेग को देखकर जरा घबड़ा गये और उन्होंने गाड़ीवाले से ...

माओवादियों द्धारा 26 जवान शहीद और माओवादियों की गोलियों से छलनी नवविवाहिता की खुशियां।

हिंसा का मार्ग अपनाकर कभी भी समाज में  परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। अगर नक्सलियों को समाज में परिवर्तन लाना हैं तो उन्हें मुखयधारा से आना होगा क्योंकि खून-खरबों से कभी भी वे समाज में बदलाव नहीं ला सकते ये बातें केंद्र में समाजिक न्याय व् सशक्तिकरण मंत्री व् रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्धारा केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों पर हमले की घटना की निंदाकी।  सचमुच नक्सल मुद्दा काफी गंभीर हे जल्द ही उसका कोई हल निकलना चाहिए। उनकी मांग सही हो सकती हैं पर उनका तरीका गलत है। .बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने छत्तीतगढ़ के सुकुमा में हुए नक्सली हमले में  25 जवानों की शहादत पर मंगवार 14 /4 /17 को गहरा शोक व्यक्त किया।वही राजद अध्यक्ष  लालूप्रसाद यादव  ने भी  नक्सली  हमले की कड़ी निंदा की और केंद्र सरकार से कठोर कार्रवाई करने की मांग की।  मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा --' --जवानों की शहादत को देश हमेशा याद रखेगा। उन्होंने वीर सपूतों के परिजनों को दुःख की इस घड़ी में   धै...

रेगिस्तान में जहाज

जापान के एक द्धीप में मासाओ नाम का एक सीधा-सादा  युवक रहता था। उस गांव के लोग मछली पकड़ने का काम करते थे।  मासाओ भी  मछली पकड़ने वाले एक जहाज में खाना बनाने की नौकरी करता था। उस जहाज का कप्तान बहुत दयालु था उसने ही उसे नौकरी पर रखा था। वह  बहुत खुश था। और मन लगाकर खाना बनाने लगा। लेकिन चलते हुए जहाज में खाना पकाना बहुत ही मुश्किल था। कभी तेज हवा चलती ,कभी तूफान आ जाता तो कभी लहरें उठने लगती ,तब जहाज भयंकर तरीके से हिलने-डोलने लगता और खाने का सारा समान भी छितर जाता था। उसकी ड्यूटी सुबह से लग जाती थी। सुबह का नाश्ता बनाना फिर सबको जा-जाकर खिलाना। जूंठे बर्तनों को धोना ,रसोई की सफाई करके दोपहर का खाना पकाना और खिलाना। रात को भी खाना बनाकर ,सबको खिलाकर ,सब काम खत्म करके खुद खाता और जो कुछ भी खाना बचता था वह एक डलिया में डालकर जहाज के डेक पर चढ़कर समुद्र में डाल देता और बहुत मधुर स्वर में गीत गाते हुए मछलियों को पुकारा करता था। और यह आश्चर्य की बात थी कई रंग-बिरंगी मछलियां मासाओ का कर्णप्रिय गीत सुनकर जहाज के पास आ जाती थीं और उसका डाला हुआ भोजन पलभर में ही चट कर जाती ...

युवाओं के बीच चढ़ती ' ब्रंच पार्टी 'की मस्ती !

आधुनिक युग में युवाओ के बीच  नए-नए गेजेट्स का संसार खुलने से वे हर तरह की लाइफ स्टाइल में  रहने व मस्ती करने के  लिए फ्री हैं। आज के युवाओ के अभिभावक भी अपने बच्चे /टीनएजर को पूरी फ्रीडम देते हैं ताकि उनके युवा होते बच्चे उन्हें ऑर्थोडॉक्स या पुरातन पंथी का ठप्पा न चस्पा दें ?' तो इसी आधुनिकता शैली की देन  है यह --'-ब्रंच पार्टी ''। तो अब युवा वर्ग में भी  रेव पार्टी ,रेन पार्टी जैसे मिथक से हटकर,या यूँ कहे कि   पार्टी सर्कल्स में इन दिनों' ब्रंच पार्टी 'खूब पसंद की जा रही हैं। और खूब एन्जॉय कर रहें हैं।                                                                                                       ब्रंच पार्टी रिलेक्स देती हैं    यूँ तो पार्टियां सभी को पसंद होती ...

पहले शर्त तो पूरी करो

बहुत समय पहले की बात है कश्मीर के एक गांव में एक दादी अपने दो जुड़वा पोतों के साथ रहती थी जिनके नाम थे --रेहान और विहान। दोनों भाइयों की शक्ल इतनी मिलती थी कि उन्हें आसानी से कोई पहचान नहीं पाता था। एक बार गांव में अकाल पड़ा तो दोनों अपनी दादी को लेकर शहर आ गये तथा नोकरी करने लगे। रेहान को एक कंजूस और चालाक जमींदार के यहां काम मिला और विहान को एक भले व्यापारी के यहां।  रेहान  को नोकरी देते वक्त उस जालिम जमींदार ने कुछ शर्ते रखी थीं कि -'उसे रोटी ,कपड़े के साथ महीने में 300 रु.देगा। भोजन पत्ते पर मिलेगा। वह चाहे जितना बड़ा पत्ता लेकर आये। रेहान बिना कारण नोकरी छोड़ने की कोशिश करेगा तो उसके नाक ,कान काट लिये जायेंगे और जमींदार बिना कारण के निकालेगा  तो वह खुद अपने नाक ,कान काटकर देगा। ' इस अनोखी शर्त के तहत रेहान मन लगाकर काम करने लगा ,पर जमींदार बहुत ही दुष्ट तथा शैतानी  का दिमाग का शातिर व्यक्ति था। वह रेहान से गधों की तरह खटनी करवाता था। थककर चूर शाम 4 बजे वह एक बड़ा पत्ता तोड़कर लाता तो मालकिन बचा-खुचा खाना डाल देती। कठोर परिश्रम किये रेहान को पेटभर खाना भी पूरा नहीं...

और पानी से भीगे खाते में रेखाएं चमक उठी !

जैसलमेर के एक गांव काठोडी में  शारंगदेव  नाम का एक व्यवसायी रहता था जिसका   रुपयों का लेन -देन का व्यवसाय था। वह बहुत ही ईमानदार था कभी किसी मामले में उसके मन में कोई खोट या कपट नहीं आया था। हर जरूरतमंद की वह कम ब्याज में सहायता करता था। मगर उसका पुत्र नारंग पिता  के गुणों से ठीक विपरीत था।  एक बार गांव के एक किसान लक्ष्मण की बेटी की शादी थी। उसने शारंगदेव से थोड़ा-सा धन कर्ज पर लिया था तो धन देकर अपने बहीखाते में लिख लिया और लक्ष्मण का  अगूंठा लगवा लिया।  काफी समय बीत गये  इस बात को। एक दिन शारंगदेव पड़ोस के गांव में अपनी रकम वसूल करने जा रहा था। वह लक्ष्मण के खेत के पास से होकर गुजरा। लक्ष्मण उस दिन खेत पर ही काम कर रहा था। शारंगदेव को देखकर उसके पास आया और प्रणाम करके कहने लगा -'सेठजी !मैं  काफी दिनों से आपकी ड्योढ़ी पर आने की सोच रहा था ,पर क्या करूं ?अकेला आदमी हूँ। खेत नहीं छोड़ सकता। यह लीजिए ,आपका धन ,जो मैंने बिटिया की शादी पर कर्ज लिया लिया था। ब्याज सहित जमा कर लीजिए। 'कहकर उसने अपनी गांठ में दबी रुपयों की थैली...

स्वयं आदिशक्ति पूजा कर व करवा रही थी

अंतर्ज्ञान -सर्वज्ञता से संपन्न सप्तऋषियों का समूह श्रीकृष्ण तत्व से सुपरिचित होने के बावजूद देवर्षि की ओर देख रहे थे। महर्षि आपस्तंब इन्हीं में से एक थे। उन्हें आशा थी कि देवर्षि अपने नए सूत्र में इन प्रश्नों का समाधान करेंगे। पर्याप्त देर तक इसी तरह नीरवता बनी रही ,तब जाकर मौन देवर्षि ने आंख खोली ,जिससे हिमवान के इस दिव्य आंगन में भक्ति का उजास छा गया।  देवर्षि बोलें --'श्रीकृष्ण परात्पर ब्रह्म हैं। उनके प्रेम में न तो समाजिकता ,न नैतिक तटबंध टूटते हैं। श्रीकृष्ण के मन में गोपियों के प्रति  जो प्रेम जगा  था ,वह परमात्मा का जीवात्माओं के प्रति सहज प्रेम था ,क्योंकि गोपियां जानती थीं कि गोपनंद के नंदन श्रीकृष्ण परमात्मा के साकार विग्रह हैं। कहकर देवर्षि हंस पड़े।  महर्षि आपस्तंब कुछ बोले तो नहीं ,परन्तु उनके मुख पर संकोच का सच व लज्जा की लालिमा थीं। देवर्षि इस बात को अनदेखी कर बोलें --'जब प्रभु ने ब्रजधरा पर अवतार लीला रची थी तब महर्षि विद्रुम को भी यही भ्रम हुआ था और उन्होंने अखिल ब्रह्मांड नायक सर्व लोकाधिपति सर्वेश्वर को संसार के मानदंडों पर कसना चाहा था ,परन्...

और वृक्ष हरा-भरा हो गया

पुराणों में एक कथा आती है कि जब परीक्षित को तक्षक के द्धारा डंसने की बात का प्रचार हुआ तो सभी बड़े-बड़े मन्त्रवेत्ता झाड़-फूंक के लिए भी आने लगें। इन्हीं में एक काश्यप भी थे। नागराज तक्षक ने रास्ते में उन्हें देखा। वह उनके प्रभाव को जानता  था इसलिए एक वृद्ध ब्राह्मण का वेष बनाकर उनसे पूछा कि --'आप इतनी जल्दी और हड़बड़ाये से कहां जा रहे हैं ?'-तब काश्यपजी ने कहा --'आज तक्षक परीक्षित को डँसनेवाला है ,अतः मैं भी उसके विष को दूरकर उन्हें जीवित करने के लिये जल्दी-जल्दी जा रहा हूँ। ' यह सुनकर ब्राह्मणवेषधारी नागराज ने कहा --'तक्षक तो मैं ही हूँ ,आप लौट जाइये। मेरे दंश की चिकित्सा किसी के वश की बात नहीं है। 'तब काश्यप ने कहा --'मैं तुम्हारे विष को अवश्य दूर करूंगा। यह विधाबल से संबद्ध मेरी बुद्धि पर पूर्ण निश्चय है। ' इस पर तक्षक ने कहा --'यदि ऐसी बात है तो मैं इस वृक्ष को डँसता हूँ ,आपके पास जितनी मंत्र-शक्ति हो ,दिखाइये। '--यह सुनकर काश्यप ने कहा --'तुम अपना अहंकार प्रकट करो। मैं अभी इस वृक्ष को हरा-भरा कर देता हूँ। 'कश्यप के ऐसा कहने पर तक्षक...

जब ब्रह्माजी को मेढक बनना पड़ा

मनुष्य के जीवन में पहले या तो सुख रहता था या  दुःख ही रहता था। लेकिन अब उनके जीवन में सुख दुःख बारी-बारी से क्यों आते हैं ? .. इस सम्बंध में एक रोचक कथा है --एक बार स्वर्गलोक में ब्रह्माजी द्धारा सुख-दुःख के बंटवारे पर तीनों देवताओं की आपस में बहस छिड़ गयीं। हुआ यूं कि ब्रह्माजी एक-एक करके सुख-दुःख का मनुष्यों में बंटवारा कर रहें थे। किसी मनुष्य के हिस्से केवल सुख ,तो किसी मनुष्य के हिस्से सिर्फ दुःख ही दुःख आ रहा था।  ऐसे बंटवारें को देख अवढरदानी ने ब्रह्माजी से कहा ---'भगवन !यह तो मनुष्यों के प्रति अन्याय हो रहा हैं ,एक के हिस्से में जिंदगी भर का सुख ,तो एक के हिस्से में जिंदगी भर दुःख ?' इस बात का समर्थन विष्णुजी ने भी किया। पर ब्रह्माजी ,कहां मानने वाले थे! उन्होंने कह दिया --'मेरा निर्णय अटल है। मैं नहीं बदलूंगा। ' शंकरजी ने बहुत समझाया पर ब्रह्माजी पर असर नहीं हुआ तो ,आक्रोश में भरकर शंकरजी बोलें --'जाइये ,अब से मैं भी कुछ नहीं जानूंगा। यदि आप किसी दुखिया के पाले में पड़ जाएंगे तब आपको समझ आ जायेगी। ' एक गांव में एक जमींदार था। उसे बटवारें में केवल ...

विश्व की सर्वाधिक सुन्दर नारी -माँ होती है !

संगमरमर -नीले आसमान के तले किसानों का एक गांव था जो आवासीय क्षेत्र से कहीं अधिक खेतों की इतराती और आकाश की नीलिमा से अपनी मिलान करती हरियाली के विस्तार तक फैला था। प्रकृति कितनी मोहक है ,किन्तु फिर भी ,यदि वह फसलों को पकने और खेतों की समृद्ध मुस्कान में मदद नहीं करती तो खेतों पर खून -पसीना बहाकर मेहनत करनेवाले किसानों के लिए प्रकृति की मोहक सुंदरता का अर्थ नहीं रह जाता। बच्चों !ऐसा विश्वास करना उचित नहीं होगा कि केवल वर्षा ही फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आपको किसानों की धूसर -भूरी पीठ ,छाती तथा कनपटियों से बहती पसीनों की धार को भूलना नहीं चाहिये। उन्हें अपने श्रम का इनाम लेने का हक हैं। जो भी हो ,अभी मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ ,जिसे ,मुझे उम्मीद है कि हर छोटा बच्चा या बच्ची बहुत पसन्द करेगी और हमेशा -हमेशा के लिए याद  रखेगी।  एक दिन शाम को सूरज मानो किसान की ही तरह अथक परिश्रम करके अपने घर अस्ताचल की ओर लौट रहा था। सचमुच ,सूरज को आसमान का एक मात्र अकेला किसान कहा जा सकता है जो सितारों की दुर्लभ फसल उगाने के लिए अकेला अथक और कठोर परिश्रम करता है। ...